नमस्ते शरणये शिवे सानुकम्पे, नमस्ते जगद व्यापिके विश्वरुपे।
नमस्ते जगदवन्द्धपादारविन्दे, नमस्ते जगत्तारिणी त्राही दुर्गे।।
नमस्ते जगच्चिन्त्यमानस्वरुपे, नमस्ते महायोगिनी ज्ञानरुपे।
नमस्ते नमस्ते सदानन्द रुपे, नमस्ते जगत्तारिणी त्राही दुर्गे।।
अनाथस्य दिनस्य त्रिष्णातुरस्य, भयार्तस्य भितस्य बद्धस्य जन्तो:।
त्वमेका गतिर्देवी! निस्तारकर्त्री, नमस्ते जगत्तारिणी त्राही दुर्गे।।
अरण्ये रणे दारुणे शत्रुमध्ये, नले सागरे प्रान्तरे राजगेहे।
त्वमेका गतिर्देवी निस्तारनौका, नमस्ते जगत्तारिणी त्राही दुर्गे।।
अपारे महादुस्तरेत्यन्तघोरे, विपत्सागरे मज्नतां देहभाजाम।
त्वमेका गतिर्देवी निस्तारघोरे, नमस्ते जगत्तारिणी त्राही दुर्गे।।
नमश्चण्डिके चण्डदुर्दण्डलोला, समुत्खण्डिता खण्डिताशेषशत्रो:।
त्वमेका गतिर्देवी निस्तारबीजं, नमस्ते जगत्तारिणी त्राही दुर्गे।।
त्वमेवाघभावाध्रिता सत्यवादी, नजाताजीताक्रोधनात क्रोधनिस्ठा।
इडा पिङला त्वं सुषुम्ना नाडी, नमस्ते जगत्तारिणी त्राही दुर्गे।।
नमो देवी! दुर्गे! शिवे! भिमनादे! सरस्वत्यरुन्धत्यमेघ स्वरुपे।
विभुती: शची कालरात्री: सती त्वं, नमस्ते जगत्तारिणी त्राही दुर्गे।।
शरणमसी सुराणा सिद्धविधाधराणा, मुनीमनुजपशुना दस्युभीस्त्रासितानाम।
न्रिपतिग्रिहगतानां व्याधीभी: पोडितानां, त्वमसी शरणमेका देवी! दुर्गे! प्रसिद।।
इदं स्तोत्रं मया प्रोक्तमापदद्धारहेतुकम, त्रिसन्ध्यमेकसन्ध्यं वा पठनाद घोरसंकटात।
मुच्यते नात्र सन्देहो भुवी स्वर्गे रसातले, सर्वं वा श्लोकमेकं वा य: पठेद भक्तीमान सदा।।
स सर्वं दुष्क्रितं मुक्त्वा प्राप्नोती परमं पदम,
पठनादस्य देवेशी किं न सिद्धयती भुतले।।
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